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होली के पारम्परिक मैथिलि लोकगीत | होरी खेलैं राम मिथिलापुर
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होली के पारम्परिक मैथिलि लोकगीत | होरी खेलैं राम मिथिलापुर
मिथिलापुर एक नारि सयानी,
सीख देइ सब सखियन का,
बहुरि न राम जनकपुर अइहैं,
न हम जाब अवधपुर का।।
जब सिय साजि समाज चली,
लाखौं पिचकारी लै कर मां।
मुख मोरि दिहेउ,
पग ढील दिहेउ प्रभु बइठौ जाय सिंघासन मां।।
हम तौ ठहरी जनकनंदिनी,
तुम अवधेश कुमारन मां।
सागर काटि सरित लै अउबे,
घोरब रंग जहाजन मां।।
भरि पिचकारी रंग चलउबै,
बूंद परै जस सावन मां।
केसर कुसुम,
अरगजा चंदन,
बोरि दिअब यक्कै पल मां।।
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